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आवारा मन - लेखनी प्रतियोगिता -12-Jun-2022

है अपना मन तो मस्ती में आवारा
दिन-रात भटकता ही ये रहता है
कभी झूठी चमक देख ललचाए
कभी रूखी रोटी से खुशी पाता है।

है अपना मन तो मस्ती में आवारा
भंवरा बन हर फूल पर मंडराता है 
कभी चाहे शीला कभी मुन्नी विदेशी
कभी राधा व सीता के गुण गाता है।

है अपना मन तो बड़ा ही आवारा
जो मिले उससे खुश न रह पाता है
चिकनी चुपड़ी बातें लगे हैं अच्छी
कभी ये तलाश करें मित्रता सच्ची।

है अपना मन तो बड़ा ही आवारा
देख बड़े-बड़े महल मचल जाता है
ये देखे ख्वाब आलीशान बंगले का
कभी झोपड़ी में आनंद ये पाता है। 

 है अपना मन तो बड़ा ही आवारा
अनजानों से मिलकर मुस्कुराता है
कभी बच्चों के कोलाहल से चिढ़ता 
कभी तोतली बातों में सुख पाता है।

है अपना मन तो बड़ा ही आवारा
उसे क्या चाहिए समझ न पाता है
कभी एकल परिवार में मिले शांति
पूरे परिवार का प्रेम भी चाहता है।

होता है मन तो सदा से घुमक्कड़
चहुँ ओर ये ललचाता ही रहता है 
जो इसे बेकाबू होने से रोक लेता
जीवन में शांति व मोक्ष पाता है।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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15 Comments

नंदिता राय

14-Jun-2022 06:37 PM

बेहतरीन

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Shnaya

14-Jun-2022 02:26 PM

बहुत खूब

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Punam verma

13-Jun-2022 02:58 PM

Nice

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